Tuesday, May 3, 2011

माँ भारती की पुकार

माँ भारती की पुकार

माटी तुझसे करे पुकार, बोले भैया कर उपकार,
कब तक अपने ही बच्चों के पैरों से रौंदी जाऊं
जल्दी मुझको कफ़न  उढ़ादो  अब मैं मुक्ति पाऊँ
कभी पठानों, कभी बाब्रों, को मैंने बर्दाश्त किया
अंग्रेजों से भी नहीं डरी मैं, उनको भी परास्त किया
प्रतिदिन मैं आहत होती जब नन्हे भूखे होते हैं
मुझे चिढ़ा चिढ़ा कर अब ये रावन दिल्ली सोते हैं
हजारों टन अनाज सड़ गए, लाखों बच्चे बेमौत मर गए
cwg की बात करें क्या, आँखें झुक झुक जाती हैं
आदर्श मैं शहीदों की आँखें खून बहाती हैं
काश प्रगति न हुई होती, ये विकास रुक जाता
कम से कम मेरे पुर्तों द्वारा, (टेलिकॉम के नाम पे) यूँ मुझे न बेचा जाता
बस अब सहा नहीं जाता, चहुँ तरफ निर्मम हाल है
इनको देख मैं क्रन्दन करती हूँ
इसलिए अपनी मौत का अभिनन्दन करती हूँ
इसलिए अपनी मौत का अभिनन्दन करती हूँ

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