Sunday, February 8, 2015

आओ फिर बवाल करें |



आओ फिर बवाल करें |
चार नए सवाल करें ||
थर्रा जाएँ सरकारें
कानून को बेहाल करें
आओ फिर बवाल करें......
अन्ना का भी लें सहारा
सरकारों को ललकारें
प्रजातंत्र की कब्र को खोदें
जनता को मझधार में छोड़ें
आओ फिर बवाल करें......
सुनके किसने क्या है पाया
वाद-विवाद में क्यों पड़ना
आग जलाएं, फुल-झाड़ियाँ छोड़ें
पड़ने दें दुनिया को सड़ने
आओ फिर बवाल करें.......
सत्य का प्रमाण पत्र हम बाटें
ओरों पे कीचड़ उचटाएँ
खूब परिश्रम से फिर भ्रम को
दूर प्रदेशों में फैलाएं
आओ और बवाल मचाएं
अराजकता चारों ओर फैलायें
जहाँ से मुमकिन न हो बचपाना
इतना नीचे देश गिराएं
आओ ओर बवाल मचाएं ..........

Saturday, May 28, 2011

जीवन संगिनी

जीवन का एहसास तुम्ही से, चलने की है चाह तुम्ही से
अधरों मैं मुस्कान तुम्ही से, जीवन मैं है गान तुम्ही से
तुम हो चंचल, चितवन पावन कितनी प्यारी मस्तानी हो
इन आँखों का चैन तुम्ही हो, जीवन का आराम तुम्ही से
कितना प्यारा साथ तुम्हारा, जैसे निर्मल जल की धारा
ऋतुओं का है ज्ञान तुम्ही से, जीवन का आराम तुम्ही से
धड़कन की आवाज़ तुम्ही हो, सारा जीवन साथ तुम्ही हो
गंगा का भी भाव तुम्ही हो, गर्मी मे भी छाव तुम्ही हो
मेरे मन मंदिर में बैठी देवी का श्रंगार हो तुम
इतनी निर्मल इतनी पावन लक्ष्मी का अवतार हो तुम

Tuesday, May 3, 2011

चलो दिल्ली- चल्लो दिल्ली

 देश है पुकारता, बलिदान तेरा माँगता
अतीत को तू भूल जा, न तू कभी गुलाम था
माँ तेरी लाचार है, भूखी है बीमार है
बेबस हर इंसान है, नशे मैं संतान है
कैसा तू सपूत है, कर रहा तू चूक है
जात पात भूल जा, तू ऊंच नीच छोड़ दे
कल तुझे आवाज़ दे, आराम को तू त्याग ले
घनी अँधेरी रात क्या, तू काल को भी भेद ले
मन मैं जो ठान ले, खैर किसकी रोक ले,
भगत का तुम जोश हो, मनु का बलिदान है
दुर्गा तू शूल है, राम का तू  बाण है
माँ तुझे पुकारती, बलिदान तेरा माँगती
कर रहा एतबार है, ये बाबा (रामदेव) की पुकार है
४, जून दिनाँक का, बेसब्र इंतज़ार है
माता की पहचान बन, वीर बलवान बन
होने वाला संग्राम है, ये राम (बाबा रामदेव) का एलान है
कहना नहीं कुछ शेष है, बस एक बात विशेष है
बहुत हो गया माँ भारती का सीना छल्ली छल्ली
४, जून को चलो दिल्ली, चलो दिल्ली............

माँ भारती की पुकार

माँ भारती की पुकार

माटी तुझसे करे पुकार, बोले भैया कर उपकार,
कब तक अपने ही बच्चों के पैरों से रौंदी जाऊं
जल्दी मुझको कफ़न  उढ़ादो  अब मैं मुक्ति पाऊँ
कभी पठानों, कभी बाब्रों, को मैंने बर्दाश्त किया
अंग्रेजों से भी नहीं डरी मैं, उनको भी परास्त किया
प्रतिदिन मैं आहत होती जब नन्हे भूखे होते हैं
मुझे चिढ़ा चिढ़ा कर अब ये रावन दिल्ली सोते हैं
हजारों टन अनाज सड़ गए, लाखों बच्चे बेमौत मर गए
cwg की बात करें क्या, आँखें झुक झुक जाती हैं
आदर्श मैं शहीदों की आँखें खून बहाती हैं
काश प्रगति न हुई होती, ये विकास रुक जाता
कम से कम मेरे पुर्तों द्वारा, (टेलिकॉम के नाम पे) यूँ मुझे न बेचा जाता
बस अब सहा नहीं जाता, चहुँ तरफ निर्मम हाल है
इनको देख मैं क्रन्दन करती हूँ
इसलिए अपनी मौत का अभिनन्दन करती हूँ
इसलिए अपनी मौत का अभिनन्दन करती हूँ